From the Land of Braj, Centre of Krishna pilgrimage is a collection of photographs created as a part of a SOAS-led project with the International Association of the Vrindaban Research Institute (IAVRI) between January 1976 and March 1978.

A.W. Entwistle. Braj Centre of Krishna PilgrimageIn the early 16th century the groves of Vrindaban on the banks of the Yamuna River are said to have been identified by the Bengali saint Chaitanya Mahaprabhu as the place where Krishna dallied and frolicked with the gopis, the local cowherd girls, especially his favourite, Radha.   Vrindaban has been a pilgrimage town dedicated to the worship of Krishna ever since, and the surrounding area, known as Braj, contains many sites associated with his life. During the 16th-17th centuries Braj provided the location for a great renaissance of devotional Hinduism.  This produced a huge body of religious literature, much of it composed in the local dialect of Hindi, Braj Bhasa.

The nearby town of Hathras was the birthplace of Ram Das Gupta, who was Lecturer in Hindi at SOAS from 1962 to 1996. Ram Das Gupta established the Vrindaban Research Institute [VRI) in the upper floors of a pilgrim hostel owned by his family in 1968.  The VRI was dedicated to the task of collecting, cataloguing and conserving some of the manuscripts that were mouldering away in their thousands in temple storerooms all across the town.  Dr Gupta recruited a small team of local scholars and enabled a number of young people to acquire the skills of manuscript conservation.  During the 1970s and 1980s the VRI project, now supported by the International Association of the Vrindaban Research Institute, drew in other SOAS specialists in Hindi, Urdu, Bengali, Sanskrit and Persian. Several SOAS students completed Ph.D theses on Vaishnava Hindu literature that drew on materials at the VRI. The late Alan W. Entwistle (1949-1996) was one such student. 

The majority of these photographs of Braj were taken by Alan Entwistle as he led an IAVRI effort to survey the region.  Others were taken by the SOAS PhD student David Crawford, Gerry Losty of the British Library, and Paul Fox, the SOAS photographer. The digitisation programme uses these images and the descriptions Entwistle wrote of each image, updated with searchable Hindi and geographic data.  Entwistle went on to build a career as a scholar and teacher of Hindi language and literature and Indian civilisation at the universities of Groningen and Washington (Seattle).  His principal publication is Braj: Land of Krishna Pilgrimage (Groningen: Egbert Foster, 1987).

 

We are able to digitize this collection and make it accessible to the wider world due to the kind generosity of Mr Michael Palin.

Vrindaban Research Institute

 
 
Additional thanks is due to Mrs Robyn Gupta and the Estate of Dr. Ram Das Gupta for additional photographs and films documenting the Land of Braj and the work of the Vrindaban Research Institute [VRI).    
 
To view a short film on the origins and history of the VRI project, please click on the image to the left.  The commentary is provided by the late Alan Entwistle.

 

 


 

'कृष्ण तीर्थयात्रा का केंद्र, ब्रज भूमि से' फ़ोटोग्राफ़ों का संग्रह है जो जनवरी १९७६ और मार्च १९७८ के बीच में वृन्दावन शोध संस्थान की अंतरराष्ट्रीय समिति (आइ.ए.वी.आर.आइ.) के साथ सोएस की नेतृत्वा से की गयी परियोजना के द्वारा बनवाया गया है।

कहा जाता है कि यमुना नदी के तीरों पर वृंदावन के उपवन १६वीं शताब्दी की शुरु में बंगाली संत चैतन्य महाप्रभु से उसी जगह के रूप में पहचाना गया था जिसपर कृष्ण स्थानिक गोपियों और विशेष रूप में अपनी मनभावन राधा के साथ खेलते और आनंद मनाते रहता था। वृंदावन उस समय से कृष्ण भक्ति समर्पित तीर्थयात्री शहर हुआ है और उसके आस-पास के ब्रज कहे जाते हुए क्षेत्र में कृष्ण के जीवन से संबंधित बहुत-सारे स्थान हैं। १६वीं और १७वीं शताब्दियों के दौरान ब्रज में हिंदू धर्म का एक भक्तिपूर्ण पुनर्जागरण हुआ। इस से धार्मिक साहित्य का एक विशल कोष रचा गया था और उसका एक बड़ा भाग हिंदी की स्थानिक उपभाषा ब्रजभाषा में लिखा गया था। 

ब्रज का आस-पास शहर हथरास राम दास गुप्ता का जन्मस्थान था जो १९६२ से १९९६ तक सोएस पर हिंदी में शिक्षक था। राम दास गुप्ता ने १९६८ में अपने परिवर के तीर्थयात्री होस्टल के ऊपरी तल्लों में वृन्दावन शोध संस्थान (वी.आर.आइ.) स्थापित किया। वी.आर.आइ. के उन पांडुलिपियों में से कुछ को संग्रहीत करने सूचीपत्र में दर्ज करने और सुरक्षित करने के काम के लिए समर्पित था जो पूरे शहर में मंदिरों के भंडारों में बरबाद हो जा रहे थे। डाक्टर गुप्ता ने स्थानिक विद्वानों का छोटा दल नियुक्त किया और बहुत-सारे युवकों को पांडुलिपि सुरक्षण के उपय सीखने देते थे। १९७० और १९८० दशकों के दौरान वृन्दावन शोध संस्थान की अंतरराष्ट्रीय समिति के सहारे के साथ वी.आर.आइ. परियोजना ने हिंदी उर्दू बंगाली संस्कृत और फ़ारसी में सोएस के विशेषज्ञओं को भी शामिल किया। मृत एलन डबल्यू एनट्विस्टल (१९४९-१९९६) एक ऐसा विद्यार्थी था।

ब्रज की इन फ़ोटोग्राफ़ों का बहुसंख्य एलन एनट्विस्टल से खींच लिया था जब उसने प्रांत को सर्वेक्षण करने का आइ.ए.वी.आर.आइ. की परियोजना का नेतृत्व किया। दूसरी सोएस के पीएचडी विद्यार्थी डेविड क्राॅफ़र्ड, ब्रिटिश लाइब्रेरी का गेरी लोस्टी और सोएस के फ़ोटोगरफ़र पाॅल फ़क्स से खींच ली गयी थी। अंकरूपण कार्यक्रम खोजनीय हिंदी और भूगोलिक उद्दिनांकित डाटा सहित इन तस्वीरों और एनट्विस्टल से लिखे गये वर्ननों का उपयोग करता है। एनट्विस्टल ने बद ग्रोनिंगन और वाॅशिंगटन (सीऐटल) के विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषा और साहित्य और भारतीय सभ्यता का विद्वान और अध्यापक था। उसका मुख्य प्रकाशण 'ब्रज: लैंड अफ़ कृष्ण पिल्ग्रमज' ( ग्रोनिंगन: एगबर्ट फ़स्टर, १९८७) है।

हम मिस्टर माइकल पेलिन की सदय दानशीलता के द्वारा इस संग्रह को अंकरूप और विशाल विश्व को उपलब्ध कर सकते हैं